Tuesday, 8 September 2015

सविता बहन की रिबन कटाई sex story

दोस्तो, मेरा नाम सविता अग्रवाल है। मैं आपके ही आस पास कहीं रहती हूँ। मेरी उम्र इस वक़्त 30 साल है और मैं एक शादीशुदा बाल बच्चेदार औरत हूँ, ज़िंदगी का हर लुत्फ मैं उठा चुकी हूँ।
इस वक़्त मेरी जवानी अपने पूरी उबाल पर है, अपने आप को हमेशा फिट और रेडी रखना मुझे बहुत पसंद है।
हालांकि मेरा रंग थोड़ा सा सांवला है, मगर फिर भी मैं देखने में बहुत आकर्षक हूँ, मेरी फिगर 36-28-38 है, कद 5’8′ है, पर्सनेलिटी बहुत बढ़िया है, घर परिवार बहुत अच्छा है, मायके और ससुराल दोनों बिजनेस करने वाले घराने हैं, तो घर में हर चीज़ ज़रूरत से ज़्यादा ही मिली।





पैसे खुले होने का फायदा यह होता है कि आपको आज़ादी भी बहुत मिलती है। इसका मुझे यह फायदा मिला कि बचपन से लेकर आज तक मैं किसी चीज़ के लिए नहीं तरसी, घर में सब कुछ था तो इस कारण मैं इंटरनेट की मेहरबानी से उम्र से बहुत पहले जवान हो गई, क्लास में अपनी सभी सहेलियों को सेक्स की नई नई बातें मैं ही बताती थी।

मेरा खुद का मन बहुत करता था सेक्स करने को मगर लड़के तो सब क्लास की टॉप की लड़कियों के दीवाने थे, मुझे भी एक दो लड़के लाईन देते थे, मगर वो मुझे पसंद नहीं थे।

खैर आज मैं आपको अपने पहले सेक्स की कहानी सुनाने जा रही हूँ।


बात तब की है जब मैं सिर्फ 18 साल की कमसिन कली थी, घर में मैं, बड़ा भाई जो मुझसे सिर्फ 2 साल ही बड़ा था और मम्मी और पापा ही थे बस।
घर में हम दोनों भाई बहन का एक ही रूम था जिसमें हम दोनों की पढ़ने की जगह और दो अलग अलग बेड लगे हुये थे।
घर में सबसे छोटी होने के कारण सब मुझे बच्ची ही समझते थे मगर मैं मन ही मन खुद को पूरी जवान समझती थी।
घर में ज़्यादातर मैं एक ढीली सी टी शर्ट और निकर या बरमूडा ही पहनती थी। मेरी फिगर तब 32-26-34 थी तो कुछ भी पहनती थी तो बहुत सेक्सी लगती थी।

कमरे में एक बड़ा सा शीशा लगा था जो अक्सर मुझे कहता था- तुम बहुत सेक्सी हो सवी!
जब कभी मैं अपने रूम में अकेली होती, भाई कहीं बाहर गया होता तो मैं अपने सारे कपड़े उतार कर उस बड़े शीशे से सामने जा खड़ी होती और अपने जवान होते जिस्म को देखती।
यह आदत मुझे बचपन से थी, मैंने अपने बदन को एक एक इंच जवान होते देखा था।

मेरा भाई भी मेरा बहुत हैंडसम था, आज भी है, मेरी क्लास की लड़कियाँ भी उस पर मरती थी, एक दो ने तो मुझे उससे दोस्ती करवाने को भी कहा।
ऐसे ही एक दिन मेरी एक सहेली ने कहा- यार, तेरा भाई इतना हॉट है, सेक्सी है, क्या तेरा दिल नहीं करता कि उसके साथ ही सेक्स करने को?
मैंने कहा- क्या बकवास है यार, वो मेरा भाई है।
वो बोली- तभी देख तो, कितना डेशिंग है।
मैंने भी देखा, मेरा तो भाई था, मगर उसे सेक्स के नज़रिये से मैंने पहले कभी नहीं देखा था।

वो लड़की मेरे भाई पे मरती थी तो अक्सर मुझे पूछती रहती- तेरा भाई क्या घर में चड्डी पहन के घूमता है, क्या तूने उसे कभी नंगा देखा है, उसका लंड कैसा है? वगैरह वगैरा!
मगर उसकी बातें मेरे दिल पे असर करने लगी थी, मैं भी अपने भाई को किसी और ही नज़र से देखने लगी थी, और यह बात मेरे भाई ने भी नोटिस की थी कि मेरे देखने का नज़रिया बदलने लगा है, मगर उसने कभी कुछ कहा नहीं।

एक दिन भाई नहा कर बाथरूम से निकला, मैं उस वक़्त नीचे नाश्ता करने गई थी, माँ ने कहा- जा अपने भाई को भी बुला ला!
मैं भाई को बुलाने ऊपर कमरे में गई, उस वक़्त भाई कमरे में बड़े शीशे के सामने खड़ा था, मैंने जब दरवाजा खोला तो देखा, भाई बिल्कुल नंगा खड़ा शीशे के सामने अपने मसल बना बना के देख रहा था, उसका लंबा सा भूरा लंड उसके सामने लटक रहा था।

मेरी तरफ भाई की पीठ थी मगर मैं शीशे में से उसका लंड देख रही थी। भाई को इसका कोई पता न था, मगर अचानक उसकी निगाह शीशे में से मुझ पर पड़ी।वो एकदम से हड़बड़ा गया और भाग कर तौलिया उठा कर लपेट लिया।
मैं भी उसे बाहर से नाश्ते के लिए बुला कर हँसती हुई नीचे आ गई।

मगर उसके लंबे लंड ने मेरी चूत के मुँह में पानी ला दिया।
हमने साथ नाश्ता किया मगर एक दूसरे से आँख नहीं मिला रहे थे। मगर अब मुझे इस बात की बहुत इच्छा हो रही थी कि मैं भाई का लंड अपने हाथ में पकड़ कर देखूँ, उससे खेलूँ, प्यार करूँ, ब्लू फिल्मों की हीरोइन की तरह मुँह में लेकर चूसूँ और अपनी छोटी सी कुँवारी चूत में लेकर चुदवाऊँ।

मगर ये सब इतना आसान नहीं था तो मैंने इसके लिए अपने दिमाग से एक स्कीम सोची।
मैंने सोचा कि अगर मुझमें सेक्स करने की चाह है तो भाई तो मुझसे बड़ा है, उसमें भी ज़रूर होगी। क्यों न अगर मैं अपने भाई को अपने कुँवारे हुस्न के जलवे दिखाऊँ तो हो सकता है कि वो मुझ पर मोहित हो जाए और मुझे अपने लंड का तोहफा दे दे।
तो अपनी स्कीम के अनुसार मैं घर में अपने कमरे में खासकर बहुत ही छोटी छोटी निकर पहन कर रखती ताकि भाई मेरी सुंदर सेक्सी टाँगों को देख सके, जो टी-शर्ट्स पहनती वो बड़े गले की होती और टी शर्

0 comments:

Post a Comment